(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारतीय मूर्ति और चित्रकला: सल्तनत कालीन और मुग़ल कालीन मूर्तिकला और स्थापत्य (Sculpture and Painting: Mughal & Sultanate Period Sculpture and Architecture)
सल्तनत कालीन मूर्तिकला
तेरहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी के तीसरे दशक तक के काल को सल्तनत काल कहा जाता है। दरअसल इसे भारत में मुस्लिम शासन का प्रथम चरण भी कहा जा सकता है। यद्यपि एक काल में भारत में मुसलमानों का शासन रहा, जो मूर्तिभंजक अथवा मूर्तिपूजा के विरोधी माने जाते हैं। फिर भी भारत की बहुसंख्यक प्रजा के हिन्दू होने के कारण जिनकी मूर्तिपूजा में आस्था थी, मूर्तिकला अपना अस्तित्व बनाये रही। इस काल में हिन्दू धर्म से सम्बन्धित तथा अन्य मूर्तिशिल्पों का निर्माण हुआ। उड़ीसा के पुरी और कोणार्क मंदिरों में निर्मित मूर्तियाँ, तंजौर मंदिर की मूर्तियाँ और विजयनगर के शासकों के संरक्षण में निर्मित मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
इस काल की मूर्तिकला की निम्न विशेषताएँ हैं
- इस काल की मूर्तियाँ अत्यंत भावपूर्ण हैं। मूर्तियों में नवीनता की छाप स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
- मूर्तियाँ सुन्दर एवं सजीव हैं। मूर्तियों के प्रत्येक अंगों का अंकन उत्कृष्टता से किया गया है।
- विजयनगर शैली की मूर्तियों में शांति, करूणा, दुःख आदि के भाव दृष्टिगोचर होते हैं।
मुगलकालीन मूर्तिकला
- सल्तनत शासन के पतन के बाद मुगल शासकों ने भारत की सत्ता संभाली। इनके शासन को भारत में मुस्लिम शासन के दूसरे चूरण के रूप में देखा जाता है। मुगल भी मूर्तिभंजक थे, किंतु अपने राजनीतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कुछ उदार शासकों ने बहुसंख्यक हिन्दू जनता को उनके धार्मिक क्रियाकलापों की स्वतंत्रता प्रदान की थी। इस काल में मूर्तिकला अवरूद्ध रही लेकिन समाप्त नहीं हुई। जब मुगलों ने उत्तर भारत पर अधिकतर जमाया तो दक्षिण भारत में मूर्तिकला फली-फूली और जब मुगलों ने दक्षिण भारत को अपने अधीन किया तो उत्तर भारत के राजपूत शासकों ने मूर्तिकला को संरक्षण प्रदान किया। उत्तरी भारत की मूर्तियों में प्राचीन भारतीय मूर्तिकला की विशेषताएँ देखने को मिलती हैं। दक्षिण भारतीय मूर्तिकला में देवी-देवताओं की प्रधानता दिखायी देती है।
ब्रिटिश कालीन मूर्तिकला
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ब्रिटिशकाल में भी भारतीय मूर्तिकला का अस्तित्व बना रहा। उत्तर प्रदेश, पंजाब, जयपुर, बंगाल, ग्वालियर तथा मद्रास इस काल में मुर्तिकला के प्रमुख केन्द्र थे। लखनऊ, कलकत्ता आदि नगरों में भारतीय और विदेशी शैली में मूर्तियाँ निर्मित हुईं। पहाड़ी रियासतों में निर्मित मूर्तियाँ उत्कृष्ट हैं। दक्षिण भारत में मद्रास इस काल में मूर्तिनिर्माण का प्रमुख केन्द्र था। इस काल में पाषाण और धातु दोनों का ही मूर्ति निर्माण में प्रयोग किया गया।
अगले अंक में मूर्तिकला से जुड़े कुछ अन्य रोचक जानकारियों को लेकर हम शीघ्र ही आपके समक्ष प्रस्तुत होंगे।